सबका साथ सबका विकास

हम भलीभातिं मालूम है कि आज पुरे देश को अनाज देने वाला स्वयं भुखा है। भारतवासीयों के देह ढकने वाला स्वंय नंगा है।

आज हमारे देश में किसानों और बुनकरों की समस्याओं से कौन अज्ञात है। हम भलीभातिं मालूम है कि आज पुरे देश को अनाज देने वाला स्वयं भुखा है। भारतवासीयों के देह ढकने वाला स्वंय नंगा है। आज़ादी के 70 साल बीत जाने पर भी इनकी स्तिथि में काई सुधार नही आया है। मज़दूरों को चुनाव के समय याद तो किया जाता है प्रन्तु उनके विकास के लिए कोइ उचित निर्णय नहीं लिया जाता। आजादी के पहले और इसके कुछ सालों बाद तक गांवों में लोगों के खर्च कम थेण् लोग खेती पर निर्भर थे और ज्यादातर वस्तुओं का घरेलू उत्पादन होता थाण् इसलिए शहरी कामगारों की तुलना में ग्रामीणों का वेतन कम थाए लेकिन आज हर जगह उत्पादन घटा है और आमदनी भीण् इसलिए अब गावों एवं छोटे शहरों का विकास भी जरूरी हैण् हमारा लक्ष्य समाज के इन सभी दबे कुचले लोगो का समाज की मुख्य धारा से जोड कर विकास में उन्हें उन की साझेदारी दिलाना है।





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